Books of Jame` al-Osool al-Tis`ah min al-Sunnah al-Mutahharh, Ma`alim al-Sunnah al-Nabawiyyah, and al-Wajeez fi al-Sunnah al-Nabawiyyah

The Sunnah of the Prophet.. Accessible to Everyone

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Jame` al-Osool al-Tis`ah min al-Sunnah al-Mutahharh

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Ma`alim al-Sunnah al-Nabawiyyah

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al-Wajeez fi al-Sunnah al-Nabawiyyah

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al Ahadith al Kulliyyah

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قال تعالى: {وَمَا أُمِرُوا إِلاَّ لِيَعْبُدُوا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ}. [البينة:5]

6 - عن أَبي كَبْشَةَ الْأَنّْمَارِيِّ : أَنَّهُ سَمِعَ رَسُولَ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم يَقُولُ: (ثَلاَثَةٌ أُقْسِمُ عَلَيْهِنَّ، وَأُحَدِّثُكُمْ حَدِيثاً فَاحْفَظُوهُ:
قَالَ: مَا نَقَصَ مَالُ عَبْدٍ مِنْ صَدَقَةٍ، وَلاَ ظُلِمَ عَبْدٌ مَظْلَمَةً فَصَبَرَ عَلَيْهَا إِلاَّ زَادَهُ اللهُ عِزّاً، وَلاَ فَتَحَ عَبْدٌ بَابَ مَسْأَلَةٍ إِلاَّ فَتَحَ اللهُ عَلَيْهِ بَابَ فَقْرٍ) أَوْ كَلِمَةً نَحْوَهَا.
(وَأُحَدِّثُكُمْ حَدِيثاً فَاحْفَظُوهُ، قَالَ: إِنَّمَا الدُّنْيَا لِأَرْبَعَةِ نَفَرٍ: عَبْدٍ رَزَقَهُ اللهُ مَالاً وَعِلْماً، فَهُوَ يَتَّقِي فِيهِ رَبَّهُ، وَيَصِلُ فِيهِ رَحِمَهُ، وَيَعْلَمُ لِلَّهِ فِيهِ حَقّاً، فَهَذَا بِأَفْضَلِ المَنَازِلِ؛ وَعَبْدٍ رَزَقَهُ اللهُ عِلْماً وَلَمْ يَرْزُقْهُ مَالاً، فَهُوَ صَادِقُ النِّيَّةِ، يَقُولُ: لَوْ أَنَّ لِي مَالاً لَعَمِلْتُ بِعَمَلِ فُلاَنٍ، فَهُوَ بِنِيَّتِهِ، فَأَجْرُهُمَا سَوَاءٌ. وَعَبْدٍ رَزَقَهُ اللهُ مَالاً وَلَمْ يَرْزُقْهُ عِلْماً، فَهُوَ يَخْبِطُ فِي مَالِهِ
[1] ، بِغَيْرِ عِلْمٍ، لاَ يَتَّقِي فِيهِ رَبَّهُ، وَلاَ يَصِلُ فِيهِ رَحِمَهُ، وَلاَ يَعْلَمُ لِلَّهِ فِيهِ حَقّاً، فَهَذَا بِأَخْبَثِ المَنَازِلِ. وَعَبْدٍ لَمْ يَرْزُقْهُ اللهُ مَالاً وَلاَ عِلْماً، فَهُوَ يَقُولُ: لَوْ أَنَّ لِي مَالاً لَعَمِلْتُ فِيهِ بِعَمَلِ فُلاَنٍ، فَهُوَ بِنِيَّتِهِ، فَوِزْرُهُمَا سَوَاءٌ) .

अबू कबशा अम्र बिन साद अन्मारी -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है कि आप -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "मैं तीन चीज़ों पर क़सम खाता हूँ और एक हदीस बताता हूँ, उसे याद कर लो। किसी बंदे का धन सदक़ा करने से कम नहीं होता, जिस बंदे पर अत्याचार होता है, फिर वह उसपर धैर्य रखता है, तो अल्लाह उसका सम्मान बढ़ा देता है और जो बंदा माँगने का दरवाज़ा खोलता है, अल्लाह उसके लिए निर्धनता का दरवाज़ा खोल देता है -अथवा इसी तरह का कोई शब्द फ़रमाया-। एक हदीस सुनाता हूँ, उसे याद कर लो।" फ़रमाया : "दुनिया चार प्रकार के लोगों के लिए है : एक वह बंदा, जिसे अल्लाह ने धन एवं ज्ञान प्रदान किया है और वह उसके प्रति अपने रब से भय खाता है और उसके द्वारा अपने निकटवर्तियों का हक़ अदा करता है तथा उसमें अल्लाह के अधिकार को जानता है। यह सबसे उत्तम दर्जा है। दूसरा वह बंदा है, जिसे अल्लाह ने ज्ञान प्रदान किया है और धन से वंचित रखा है, लेकिन उसकी नीयत सच्ची है। वह कहता है : यदि मेरे पास धन होता, तो मैं अमुक व्यक्ति की तरह काम करता। अतः, उसे उसकी नीयत के अनुरूप प्रतिफल मिलेगा और दोनों का सवाब बराबर होगा। तीसरा वह बंदा है, जिसे अल्लाह ने धन दिया है, लेकिन ज्ञान नहीं दिया है। अतः, वह अपना धन ज्ञान के बिना खर्च करता है। धन के बारे में न अल्लाह से डरता है, न निकटवर्तियों का हक़ अदा करता है और न उसमें अल्लाह के अधिकार को जानता है। यह सबसे बुरा दर्जा है। जबकि चौथा व्यक्ति वह है, जिसे अल्लाह ने न धन दिया है और न ही ज्ञान दिया है। वह कहता हैः यदि मेरे पास धन होता, मैं अमुक व्यक्ति (अर्थात इस हदीस में उल्लिखित तीसरे व्यक्ति) की तरह कार्य करता। अतः, उसकी नीयत का एतबार होगा और इन दोनों का पाप बराबर होगा।"

ت2325/ جه4228] [

* حسن صحيح.

5 - (م) عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ قَالَ: سَمِعْتُ رَسُولَ الله صلّى الله عليه وسلّم يَقُولُ: (إِنَّ أَوَّلَ النَّاسِ يُقْضَى يَوْمَ الْقِيَامَةِ عَلَيْهِ رَجُلٌ اسْتُشْهِدَ، فَأُتِيَ بِهِ، فَعَرَّفَهُ نِعَمَهُ فَعَرَفَهَا. قَالَ: فَمَا عَمِلْتَ فِيهَا؟ قَالَ: قَاتَلْتُ فِيكَ حَتَّى اسْتُشْهِدْتُ، قَالَ: كَذَبْتَ! وَلكِنَّكَ قَاتَلْتَ لِأَنْ يُقَالَ جَرِيءٌ؛ فَقَدْ قِيلَ، ثُمَّ أُمِرَ بِهِ فَسُحِبَ عَلَى وَجْهِهِ حَتَّى أُلْقِيَ فِي النَّارِ.
وَرَجُلٌ تَعَلَّمَ الْعِلْمَ وَعَلَّمَهُ وَقَرَأَ الْقُرْآنَ، فَأُتِيَ بِهِ، فَعَرَّفَهُ نِعَمَهُ فَعَرَفَهَا. قَالَ: فَمَا عَمِلْتَ فِيهَا؟ قَالَ: تَعَلَّمْتُ الْعِلْمَ وَعَلَّمْتُهُ وَقَرَأْتُ فِيكَ الْقُرْآنَ. قَالَ: كَذَبْتَ! وَلكِنَّكَ تَعَلَّمْتَ الْعِلْمَ لَيُقَالَ عَالِمٌ، وَقَرَأْتَ الْقُرْآنَ لِيُقَالَ هُوَ قَارِئٌ؛ فَقَدْ قِيلَ، ثُمَّ أُمِرَ بِهِ فَسُحِبَ عَلَى وَجْهِهِ حَتَّى أُلْقِيَ فِي النَّار.
وَرَجُلٌ وَسَّعَ الله عَلَيْهِ، وَأَعْطَاهُ مِنْ أصْنَافِ الْمَالِ كُلِّهِ، فَأُتِيَ بِهِ، فَعَرَّفَهُ نِعَمَهُ فَعَرَفَهَا. قَالَ: فَمَا عَملْتَ فِيهَا؟ قَالَ: مَا تَرَكْتُ مِنْ سَبِيلٍ تُحِبُّ أَنْ يُنْفَقَ فِيهَا إِلاَّ أَنْفَقْتُ فِيهَا لَكَ. قَالَ: كَذَبْتَ! وَلكِنَّكَ فَعَلْتَ لِيُقَالَ هُوَ جَوَادٌ؛ فَقَدْ قِيلَ، ثُمَّ أُمِرَ بِهِ فَسُحِبَ عَلَى وَجْهِهِ، ثُمَّ أُلْقِيَ فِي النَّارِ) .

अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को फ़रमाते हुए सुना: क़यामत के दिन सर्वप्रथम जिस व्यक्ति के बारे में निर्णय लिया जाएगा, वह दुनिया में शहीद हुआ होगा। उसे लाया जाएगा, फिर अल्लाह तआला उसे अपनी नीमतों का इक़रार कराएगा, तो वह उन नीमतों का इक़रार कर लेगा। तब (अल्लाह तआला) कहेगा: तूने इन नीमतों का कैसा उपयोग किया? वह कहेगा: मैं तेरे लिए जिहाद करता रहा, यहाँ तक कि शहीद कर दिया गया। अल्लाह कहेगा: तूने झूठ कहा। सच्चाई यह है कि तुमने जंग इसलिए की, ताकि तुम्हें वीर कहा जाए और यह कहा जा चुका, फिर उसके प्रति आदेश दिया जाएगा और उसे चेहरे के बल घसीट कर जहन्नम में डाल दिया जाएगा। इसी प्रकार, एक वह व्यक्ति होगा, जिसने ज्ञान सीखा और सिखाया और क़ुरआन पढ़ा था। उसे लाया जाएगा और उससे भी नीमतों की पहचान करवाई जाएगी, तो वह पहचान लेगा और इक़रार कर लेगा। अल्लाह तआला कहेगा: तुमने उनका क्या किया? वह कहेगा : मैंने ज्ञान सीखा और सिखाया और तेरे लिए क़ुरआन पढ़ा। तब अल्लाह कहेगा: तूने झूठ कहा, बल्कि तूने ज्ञान इसलिए प्राप्त किया ताकि तुझे ज्ञानी कहा जाए और क़ुरआना इस लिए पढ़ा ताकि क़ुरआन- वाचक (क़ारी) कहा जाए और यह सब कहा जा चुका। फिर आदेश होगा, तो उसे मुँह के बल घसीट कर जहन्नम में डाल दिया जाएगा। एक और व्यक्ति को लाया जाएगा, जिसे अल्लाह ने धन बहुत दिया था। अल्लाह तआला उसे भी अपनी नीमतों की पहचान कराएगा, तो वह पहचान लेगा। अल्लाह कहेगा: तूने इनका क्या किया? वह कहेगा: मैंने प्रत्येक वह कार्य जिसमें तू खर्च करना पसंद करता है, उसमें खर्च किया। अल्लाह कहेगा: तूने झूठ कहा, बल्कि तूने ऐसा इसलिए किया ताकि कहा जाए कि तू दानवीर है और यह सब कहा जा चुका। फिर आदेश होगा और उसे भी चेहरे के बल घसीट कर जहन्नम में डाल दिया जाएगा।

25 - (ق) عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم: (لَمَّا قَضَى اللهُ الخَلْقَ كَتَبَ فِي كِتَابِهِ، فَهُوَ عِنْدَهُ فَوْقَ العَرْشِ: إِنَّ رَحْمَتِي غَلَبَتْ غَضَبِي) .

अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अंहु) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हुए कहते हैंः "अल्लाह ने जब मखलूक़ की सृष्टि की, तो एक किताब में, जो उसके पास अर्श पर है, लिख दियाः मेरी रहमत मेरे क्रोध पर हावी रहेगी।" एक रिवायत के शब्द हैंः "मेरी रहमत मेरे क्रोध पर हावी हो गई।" जबकि एक रिवायत में हैः "मेरी रहमत मेरे क्रोध से आगे रही।"

32 - (ق) عَنْ أَبِي مُوسَى الْأَشْعَرِيِّ قَالَ: قَالَ النَّبِيُّ صلّى الله عليه وسلّم: (مَا أَحَدٌ أَصْبَرُ عَلَى أَذًى سَمِعَهُ مِنَ اللهِ [1] ، يَدَّعُونَ لَهُ الوَلَدَ، ثُمَّ يُعَافِيهِمْ وَيَرْزُقُهُمْ) .

अबू मूसा अशअरी (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया : “कोई भी व्यक्ति अथवा कोई भी वस्तु अल्लाह से अधिक किसी ऐसी कष्टदायक बात पर सब्र करने वाली नहीं है, जो उसे सुनाई दे। लोग अल्लाह की संतान होने की बात करते हैं, लेकिन इसके बावजूद अल्लाह उन्हें सुख-शांति और रोज़ी देता है।”

[خ7378، (6099)/ م2804]

35 - (ق) عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه، عَنِ النَّبِيِّ صلّى الله عليه وسلّم أَنَّهُ قالَ: (إِنَّ اللهَ يَغَارُ، وَغَيْرَةُ اللهِ أَنْ يَأْتِيَ المُؤْمِنُ مَا حَرَّمَ اللهُ) .

अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "अल्लाह (तआला) को ग़ैरत आती है, और अल्लाह को ग़ैरत इस बात पर आती है कि आदमी वह कार्य करे, जिसे अल्लाह ने ह़राम (वर्जित) किया है।"

39 - (ق) عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه، عَنِ النَّبِيِّ صلّى الله عليه وسلّم قَالَ: (الإِيمَانُ بِضْعٌ [1] وَسِتُّونَ شُعْبَةً [2] ، وَالحَيَاءُ شُعْبَةٌ مِنَ الإِيمَانِ) .

अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) का वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "ईमान की सत्तर से कुछ अधिक शाखाएँ हैं, जिनमें सर्वश्रेष्ठ शाखा 'ला इलाहा इल्लल्लाह' कहना है, जबकि सबसे छोटी शाखा रास्ते कष्टदायक वस्तु को हटाना है तथा हया भी ईमान की एक शाखा है।"

4 - (ق) عن عُمَرَ بْنِ الخَطَّابِ رضي الله عنه قَالَ: سَمِعْتُ النَّبِيَّ صلّى الله عليه وسلّم يَقُولُ: (يَا أَيُّهَا النَّاسُ! إِنَّمَا الْأَعْمَالُ بِالنِّيَّةِ [1] ، وَإِنَّمَا لاِمْرِئٍ مَا نَوَى، فَمَنْ كَانَتْ هِجْرَتُهُ إِلَى اللهِ وَرَسُولِهِ [2] ، فَهِجْرَتُهُ إِلَى اللهِ وَرَسُولِهِ، وَمَنْ هَاجَرَ إِلَى دُنْيَا يُصِيبُهَا، أَوْ امْرَأَةٍ يَتَزَوَّجُهَا، فَهِجْرَتُهُ إِلَى مَا هَاجَرَ إِلَيْهِ) .

उमर बिन ख़त्ताब- रज़ियल्लाहु अन्हु- अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हैं कि आपने फ़रमायाः सभी कार्यों का आधार नीयतों पर है और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी नीयत के अनुरूप ही परिणाम मिलेगा। अतः, जिसकी हिजरत दुनिया प्राप्त करने या किसी स्त्री से शादी रचाने की हो, उसकी हिजरत उसी काम के लिए है, जिसके लिए उसने हिजरत की।

10 - (م) عَن ابْنِ شُمَاسَةَ المَهْرِيِّ قَالَ: حَضَرْنَا عَمْرَو بْنَ العَاصِ وَهُوَ فِي سِيَاقَةِ المَوْتِ [1] ، فَبَكَى طَوِيلاً وَحَوَّلَ وَجْهَهُ إِلَى الجِدَارِ، فَجَعَلَ ابْنُهُ يَقُولُ: يَا أَبَتَاهُ! أَمَا بَشَّرَكَ رَسُولُ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم بِكَذَا؟ أَمَا بَشَّرَكَ رَسُولُ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم بِكَذَا؟ قَالَ: فَأَقْبَلَ بِوَجْهِهِ، فَقَالَ: إِنَّ أَفْضَلَ مَا نُعِدُّ شَهَادَةُ أَنْ لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللهُ وَأَنَّ مُحَمَّداً رَسُولُ اللهِ، إِنِّي قَدْ كُنْتُ عَلَى أَطْبَاقٍ ثَلاَثٍ [2] :
لَقَدْ رَأَيْتُنِي وَمَا أَحَدٌ أَشَدَّ بُغْضاً لِرَسُولِ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم مِنِّي، وَلاَ أَحَبَّ إِلَيَّ أَنْ أَكُونَ قَدْ اسْتَمْكَنْتُ مِنْهُ فَقَتَلْتُهُ، فَلَوْ مُتُّ عَلَى تِلْكَ الحَالِ لَكُنْتُ مِنْ أَهْلِ النَّارِ.
فَلَمَّا جَعَلَ اللهُ الْإِسْلاَمَ فِي قَلْبِي، أَتَيْتُ النَّبِيَّ صلّى الله عليه وسلّم، فَقُلْتُ: ابْسُطْ يَمِينَكَ فَلْأُبَايِعْكَ، فَبَسَطَ يَمِينَهُ، قَالَ: فَقَبَضْتُ يَدِي. قَالَ: (مَا لَكَ يَا عَمْرُو) ؟ قَالَ قُلْتُ: أَرَدْتُ أَنْ أَشْتَرِطَ قَالَ: (تَشْتَرِطُ بِمَاذَا) ؟ قُلْتُ: أَنْ يُغْفَرَ لِي، قَالَ: (أَمَا عَلِمْتَ أَنَّ الْإِسْلاَمَ يَهْدِمُ مَا كَانَ قَبْلَهُ؟ وَأَنَّ الهِجْرَةَ تَهْدِمُ مَا كَانَ قَبْلِهَا؟ وَأَنَّ الحَجَّ يَهْدِمُ مَا كَانَ قَبْلَهُ) ؟.
وَمَا كَانَ أَحَدٌ أَحَبَّ إِلَيَّ مِنْ رَسُولِ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم، وَلاَ أَجَلَّ فِي عَيْنِي مِنْهُ، وَمَا كُنْتُ أُطِيقُ أَنْ أَمْلَأَ عَيْنَيَّ مِنْهُ إِجْلاَلاً لَهُ، وَلَوْ سُئِلْتُ أَنْ أَصِفَهُ مَا أَطَقْتُ، لِأَنِّي لَمْ أَكُنْ أَمْلَأُ عَيْنَيَّ مِنْهُ، وَلَوْ مُتُّ عَلَى تِلْكَ الحَالِ لَرَجَوْتُ أَنْ أَكُونَ مِنْ أَهْلِ الجَنَّةِ.
ثُمَّ وَلِينَا أَشْيَاءَ مَا أَدْرِي مَا حَالِي فِيهَا، فَإِذَا أَنَا مُتُّ، فَلاَ تَصْحَبْنِي نَائِحَةٌ وَلاَ نَارٌ، فَإِذَا دَفَنْتُمُونِي؛ فَشُنُّوا عَلَيَّ التُّرَابَ
[3]
شَنّاً، ثُمَّ أَقِيمُوا حَوْلَ قَبْرِي قَدْرَ مَا تُنْحَرُ جَزُورٌ، وَيُقْسَمُ لَحْمُهَا، حَتَّى أَسْتَأْنِسَ بِكُمْ، وَأَنْظُرَ مَاذَا أُرَاجِعُ بِهِ رُسُلَ رَبِّي.

बिन शुमासा महरी कहते हैं कि हम लोग अम्र बिन आस (रज़ियल्लाहु अंहु) के पास उस समय पहुँचे, जब वह मृत्युशय्या पर थे। वह देर तक रोते रहे और अपना चेहरा दीवार की ओर फेर लिया। यह देख उनका बेटा कहने लगाः ऐ मेरे पिता जान, क्या अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आपको यह ख़ुशख़बरी नहीं दी थी? क्या अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आपको यह ख़ुशख़बरी नहीं दी थी? तो उन्होंने अपना चेहरा उसकी ओर फेरा और फ़रमायाः हम अपने जिस अमल को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं, वह इस बात की गवाही देना है कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अल्लाह के रसूल हैं। दरअसल, मैं अब तक तीन परिस्थितियों से गुज़रा हूँ; मैंने ख़ुद को उस परिस्थिति में भी देखा है, जब मेरे निकट कोई अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से अधिक घृणित नहीं था। उस समय मेरे निकट सबसे प्रिय बात यह थी कि मैं आपपर क़ाबू पा लूँ और आपका वध कर दूँ। अगर मैं उस परिस्थिति में मर गया होता, तो जहन्नम में होता। फिर जब अल्लाह ने मेरे दिल में इसलाम को डाल दिया, तो मैं नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहाः आप अपना दाहिना हाथ बढ़ाएँ, ताकि मैं आपकी बैअत करूँ। चुनांचे आपने अपना दाहिना हाथ बढ़ाया, तो मैंने अपना हाथ खींच लिया। आपने फ़रमायाः "तुमने ऐसा क्यों किया ऐ अम्र?" मैंने कहाः मैं एक शर्त रखना चाहता हूँ। फ़रमायाः "तुम कौन-सी शर्त रखना चाहते हो?" मैंने कहाः यह कि मुझे क्षमा कर दिया जाए। फ़रमायाः "क्या तुम नहीं जानते कि इसलाम पहले के गुनाहों को ख़त्म कर देता है, हिजरत पहले के गुनाहों को ख़त्म कर देती है और हज पहले के गुनाहों को ख़त्म कर देता है?" उस समय मेरे निकट न कोई अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रिय था और न मेरी आँखों में कोई आपसे अधिक सम्मानित था। आपके प्रताप तथा सम्मान के कारण मैं कभी आपको आँख भरकर देख भी नहीं सकता था। यदि मुझे आपका हुलिया बयान करने को कहा जाए, तो मैं बयान नहीं कर सकता। इसलिए कि मैंने कभी आपको आँख भरकर देखा ही नहीं। यदि मेरी मृत्यु उसी हाल में हो गई होती, तो आशा करता हूँ कि मैं जन्नत में प्रवेश कर जाता। फिर हमने कुछ ज़िम्मेवारियाँ संभालीं। मैं नहीं जानता कि उन मामलों में मेरा क्या हाल रहा। देखो, जब मैं मर जाऊँ, तो मेरे साथ न कोई नौहा-मातम करने वाली स्त्री जाए और न आग। फिर जब मुझे दफ़न कर दो, तो मुझपर थोड़ी-थोड़ी करके मिट्टी डालना और मेरी क़ब्र के आस-पास उतनी देर रुकना, जितनी देर में एक ऊँट ज़बह करके उसके मांस को बाँटा जासके, ताकि मैं तुमसे घुला-मिला रहूँ और देखूँ कि अपने रब के भेजे हुए फ़रिश्तों को क्या उत्तर देता हूँ।

12 - (م) عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، عَنْ رَسُولِ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم أَنَّهُ قَالَ: (وَالَّذِي نَفْسُ مُحَمَّدٍ بِيَدِهِ! لاَ يَسْمَعُ بِي أَحَدٌ مِنْ هَذِهِ الْأُمَّةِ يَهُودِيٌّ وَلاَ نَصْرَانِيٌّ، ثُمَّ يَمُوتُ، وَلَمْ يُؤْمِنْ بِالَّذِي أُرْسِلْتُ بِهِ؛ إِلاَّ كَانَ مِنْ أَصْحَابِ النَّارِ) .

अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) रिवायत करते हैं कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "क़सम है उस ज़ात की जिसके हाथ में मोहम्मद की जान है, मेरे विषय में इस उम्मत का जो व्यक्ति भी सुने, चाहे वह यहूदी हो या ईसाई, फिर वह उस चीज़ पर ईमान न लाए जिसके साथ मैं भेजा गया हूँ, तो वह जहन्नमी होगा।"

40 - (ق) عَنْ أَنَسٍ قَالَ: قَالَ النَّبِيُّ صلّى الله عليه وسلّم: (لاَ يُؤْمِنُ أَحَدُكُمْ حَتَّى أَكُونَ أَحَبَّ إِلَيْهِ مِنْ وَالِدِهِ وَوَلَدِهِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ) .

अनस बिन मालिक और अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अंहुमा) का वर्णन है कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः तुममें से कोई उस समय तक मोमिन नहीं हो सकता, जब तक मैं उसके निकट, उसकी संतान, उसके पिता और तमाम लोगों से अधिक प्यारा न हो जाऊँ।