204 - (ق) عَنْ أُسَامَةَ، عَنِ النَّبِيِّ صلّى الله عليه وسلّم قَالَ: (قمْتُ عَلَى بَابِ الجَنَّةِ، فَكانَ عامَّةَ مَنْ دَخَلَهَا المَسَاكِينُ، وَأَصْحَابُ الجَدِّ [1] مَحْبُوسُونَ، غَيْرَ أَنَّ أَصْحَابَ النَّارِ قَدْ أُمِرِ بِهِمْ إِلَى النَّارِ، وَقمْتُ عَلَى بِابِ النَّارِ فَإِذَا عامَّةُ مَنْ دَخَلَهَا النِّسَاءُ) .
उसामा बिन ज़ैद- रज़ियल्लाहु अन्हु- अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हैं कि आपने फ़रमायाः "मैं जन्नत के द्वार पर खड़ा हुआ तो देखा कि उसमें प्रायः निर्धन लोग दाखिल हो रहे थे और धनी लोग रोक दिए जा रहे थे, परन्तु जहन्नम वालों को जहन्नम की ओर ले जाने का आदेश दिया जा रहा था। मैं जहन्नम के द्वार पर खड़ा हुआ तो देखा कि उसमें प्रायः स्त्रियाँ दाखिल हो रही थीं।"
قال تعالى: {وَأُزْلِفَتِ الْجَنَّةُ لِلْمُتَّقِينَ *وَبُرِّزَتِ الْجَحِيمُ لِلْغَاوِينَ *}. [الشعراء: 90، 91]
[خ5196/ م2736]