10 ـ باب: {ادْعُونِي أَسْتَجِبْ لَكُمْ}

Hadith No.: 30

30 - (م) عَنْ أَبِي ذَرٍّ، عَن النَّبِيِّ صلّى الله عليه وسلّم، فِيمَا رَوَى عَن اللهِ تَبَارَكَ وَتَعَالَى أَنَّهُ قَالَ: (يَا عِبَادِي! إِنِّي حَرَّمْتُ الظُّلْمَ عَلَى نَفْسِي [1] وَجَعَلْتُهُ بَيْنَكُمْ مُحَرَّماً، فَلاَ تَظَالَمُوا [2] .
يَا عِبَادِي! كُلُّكُمْ ضَالٌّ إِلاَّ مَنْ هَدَيْتُهُ؛ فَاسْتَهْدُونِي أَهْدِكُمْ.
يَا عِبَادِي! كُلُّكُمْ جَائِعٌ إِلاَّ مَنْ أَطْعَمْتُهُ؛ فَاسْتَطْعِمُونِي أُطْعِمْكُمْ.
يَا عِبَادِي! كُلُّكُمْ عَارٍ إِلاَّ مَنْ كَسَوْتُهُ؛ فَاسْتَكْسُونِي أَكْسُكُمْ.
يَا عِبَادِي! إِنَّكُمْ تُخْطِئُونَ بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ، وَأَنَا أَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعاً؛ فَاسْتَغْفِرُونِي أَغْفِرْ لَكُمْ.
يَا عِبَادِي! إِنَّكُمْ لَنْ تَبْلُغُوا ضَرِّي فَتَضُرُّونِي، وَلَنْ تَبْلُغُوا نَفْعِي فَتَنْفَعُونِي.
يَا عِبَادِي! لَوْ أَنَّ أَوَّلَكُمْ وَآخِرَكُمْ وَإِنْسَكُمْ وَجِنَّكُمْ، كَانُوا عَلَى أَتْقَى قَلْبِ رَجُلٍ وَاحِدٍ مِنْكُمْ، مَا زَادَ ذَلِكَ فِي مُلْكِي شَيْئاً.
يَا عِبَادِي! لَوْ أَنَّ أَوَّلَكُمْ وَآخِرَكُمْ وَإِنْسَكُمْ وَجِنَّكُمْ، كَانُوا عَلَى أَفْجَرِ قَلْبِ رَجُلٍ وَاحِدٍ، مَا نَقَصَ ذَلِكَ مِنْ مُلْكِي شَيْئاً.يَا عِبَادِي! لَوْ أَنَّ أَوَّلَكُمْ وَآخِرَكُمْ وَإِنْسَكُمْ وَجِنَّكُمْ، قَامُوا فِي صَعِيدٍ وَاحِدٍ فَسَأَلُونِي، فَأَعْطَيْتُ كُلَّ إِنْسَانٍ مَسْأَلَتَهُ، مَا نَقَصَ ذَلِكَ مِمَّا عِنْدِي؛ إِلاَّ كَمَا يَنْقُصُ المِخْيَطُ
[3]
إِذَا أُدْخِلَ البَحْرَ.
يَا عِبَادِي! إِنَّمَا هِيَ أَعْمَالُكُمْ أُحْصِيهَا لَكُمْ، ثُمَّ أُوَفِّيكُمْ إِيَّاهَا، فَمَنْ وَجَدَ خَيْراً فَلْيَحْمَدِ اللهَ، وَمَنْ وَجَدَ غَيْرَ ذَلِكَ فَلاَ يَلُومَنَّ إِلاَّ نَفْسَهُ) .

अबू ज़र्र ग़िफ़ारी- रज़ियल्लाहु अन्हु- का वर्णन है कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अपने रब से रिवायत करते हैं कि उसने कहाः ऐ मेरे बंदो! मैंने अत्याचार को अपने ऊपर हराम कर लिया है, अतः तुम एक-दूसरे पर अत्याचार न करो। ऐ मेरे बंदो! तुम सब लोग पथभ्रष्ट हो, सिवाय उसके जिसे में मार्ग दिखा दूँ, अतः मुझसे मार्गदर्शन तलब करो, मैं तुम्हें सीधी राह दिखाऊँगा। ऐ मेरे बंदो! तुम सब लोग भूखे हो, सिवाय उसके जिसे मैं खाना खिलाऊँ, अतः मुझसे भोजन माँगो, मैं तुम्हें खाने को दूँगा। ऐ मेरे बंदो! तुम सब लोग नंगे हो, सिवाय उसके जिसे मैं कपड़ा पहनाऊँ, अतः मुझसे पहनने को कपड़े माँगो, मैं तुम्हें पहनाऊँगा। ऐ मेरे बंदो! तुम रात-दिन त्रुटियाँ करते हो और मैं तमाम गुनाहों को माफ़ करता हूँ, अतः मुझसे क्षमा माँगो, मैं तुम्हें क्षमा करूँगा। ऐ मेरे बंदो! तुम मुझे नुक़सान पहुँचाने के पात्र नहीं हो सकते कि मुझे नुक़सान पहुँचाओ और मुझे नफ़ा पहुँचाने के पात्र भी नहीं हो सकते कि मुझे नफ़ा पहुँचाओ। ऐ मेरे बंदो! अगर तुम्हारे पहले और बाद के लोग तथा इनसान और जिन्न तुम्हारे अंदर मौजूद सबसे आज्ञाकारी इनसान के दिल में जमा हो जाएँ, तो इससे मेरी बादशाहत में तनिक भी वृद्धि नहीं होगी। ऐ मेरे बंदो! अगर तुम्हारे पहले और बाद के लोग तथा तुम्हारे इनसान और जिन्न तुम्हारे अंदर मौजूद सबसे पापी इंसान के दिल में जमा हो जाएँ, तो भी इससे मेरी बादशाहत में कोई कमी नहीं आएगी। ऐ मेरे बंदो! अगर तुम्हारे पहले और बाद के लोग तथा इंसान और जिन्न एक ही मैदान में खड़े होकर मुझसे माँगें और मैं प्रत्येक को उसकी माँगी हुई वस्तु दे दूँ, तो इससे मेरे ख़ज़ाने में उससे अधिक कमी नहीं होगी, जितना समुद्र में सूई डालकर निकालने से होती है। ऐ मेरे बंदो! यह तुम्हारे कर्म ही हैं, जिन्हें मैं गिनकर रखता हूँ और फिर तुम्हें उनका बदला भी देता हूँ। अतः, जो अच्छा पाए, वह अल्लाह की प्रशंसा करे और जो कुछ और पाए, वह केवल अपने आपको कोसे।

قال تعالى: {وَقَالَ رَبُّكُمُ ادْعُونِي أَسْتَجِبْ لَكُمْ}. [غافر:60] وقال تعالى: {وَإِذَا سَأَلَكَ عِبَادِي عَنِّي فَإِنِّي قَرِيبٌ أُجِيبُ دَعْوَةَ الدَّاعِ إِذَا دَعَانِ}. [البقرة:186]

[م2577]