2 ـ باب: الإخلاص والنية

Hadith No.: 5

5 - (م) عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ قَالَ: سَمِعْتُ رَسُولَ الله صلّى الله عليه وسلّم يَقُولُ: (إِنَّ أَوَّلَ النَّاسِ يُقْضَى يَوْمَ الْقِيَامَةِ عَلَيْهِ رَجُلٌ اسْتُشْهِدَ، فَأُتِيَ بِهِ، فَعَرَّفَهُ نِعَمَهُ فَعَرَفَهَا. قَالَ: فَمَا عَمِلْتَ فِيهَا؟ قَالَ: قَاتَلْتُ فِيكَ حَتَّى اسْتُشْهِدْتُ، قَالَ: كَذَبْتَ! وَلكِنَّكَ قَاتَلْتَ لِأَنْ يُقَالَ جَرِيءٌ؛ فَقَدْ قِيلَ، ثُمَّ أُمِرَ بِهِ فَسُحِبَ عَلَى وَجْهِهِ حَتَّى أُلْقِيَ فِي النَّارِ.
وَرَجُلٌ تَعَلَّمَ الْعِلْمَ وَعَلَّمَهُ وَقَرَأَ الْقُرْآنَ، فَأُتِيَ بِهِ، فَعَرَّفَهُ نِعَمَهُ فَعَرَفَهَا. قَالَ: فَمَا عَمِلْتَ فِيهَا؟ قَالَ: تَعَلَّمْتُ الْعِلْمَ وَعَلَّمْتُهُ وَقَرَأْتُ فِيكَ الْقُرْآنَ. قَالَ: كَذَبْتَ! وَلكِنَّكَ تَعَلَّمْتَ الْعِلْمَ لَيُقَالَ عَالِمٌ، وَقَرَأْتَ الْقُرْآنَ لِيُقَالَ هُوَ قَارِئٌ؛ فَقَدْ قِيلَ، ثُمَّ أُمِرَ بِهِ فَسُحِبَ عَلَى وَجْهِهِ حَتَّى أُلْقِيَ فِي النَّار.
وَرَجُلٌ وَسَّعَ الله عَلَيْهِ، وَأَعْطَاهُ مِنْ أصْنَافِ الْمَالِ كُلِّهِ، فَأُتِيَ بِهِ، فَعَرَّفَهُ نِعَمَهُ فَعَرَفَهَا. قَالَ: فَمَا عَملْتَ فِيهَا؟ قَالَ: مَا تَرَكْتُ مِنْ سَبِيلٍ تُحِبُّ أَنْ يُنْفَقَ فِيهَا إِلاَّ أَنْفَقْتُ فِيهَا لَكَ. قَالَ: كَذَبْتَ! وَلكِنَّكَ فَعَلْتَ لِيُقَالَ هُوَ جَوَادٌ؛ فَقَدْ قِيلَ، ثُمَّ أُمِرَ بِهِ فَسُحِبَ عَلَى وَجْهِهِ، ثُمَّ أُلْقِيَ فِي النَّارِ) .

अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को फ़रमाते हुए सुना: क़यामत के दिन सर्वप्रथम जिस व्यक्ति के बारे में निर्णय लिया जाएगा, वह दुनिया में शहीद हुआ होगा। उसे लाया जाएगा, फिर अल्लाह तआला उसे अपनी नीमतों का इक़रार कराएगा, तो वह उन नीमतों का इक़रार कर लेगा। तब (अल्लाह तआला) कहेगा: तूने इन नीमतों का कैसा उपयोग किया? वह कहेगा: मैं तेरे लिए जिहाद करता रहा, यहाँ तक कि शहीद कर दिया गया। अल्लाह कहेगा: तूने झूठ कहा। सच्चाई यह है कि तुमने जंग इसलिए की, ताकि तुम्हें वीर कहा जाए और यह कहा जा चुका, फिर उसके प्रति आदेश दिया जाएगा और उसे चेहरे के बल घसीट कर जहन्नम में डाल दिया जाएगा। इसी प्रकार, एक वह व्यक्ति होगा, जिसने ज्ञान सीखा और सिखाया और क़ुरआन पढ़ा था। उसे लाया जाएगा और उससे भी नीमतों की पहचान करवाई जाएगी, तो वह पहचान लेगा और इक़रार कर लेगा। अल्लाह तआला कहेगा: तुमने उनका क्या किया? वह कहेगा : मैंने ज्ञान सीखा और सिखाया और तेरे लिए क़ुरआन पढ़ा। तब अल्लाह कहेगा: तूने झूठ कहा, बल्कि तूने ज्ञान इसलिए प्राप्त किया ताकि तुझे ज्ञानी कहा जाए और क़ुरआना इस लिए पढ़ा ताकि क़ुरआन- वाचक (क़ारी) कहा जाए और यह सब कहा जा चुका। फिर आदेश होगा, तो उसे मुँह के बल घसीट कर जहन्नम में डाल दिया जाएगा। एक और व्यक्ति को लाया जाएगा, जिसे अल्लाह ने धन बहुत दिया था। अल्लाह तआला उसे भी अपनी नीमतों की पहचान कराएगा, तो वह पहचान लेगा। अल्लाह कहेगा: तूने इनका क्या किया? वह कहेगा: मैंने प्रत्येक वह कार्य जिसमें तू खर्च करना पसंद करता है, उसमें खर्च किया। अल्लाह कहेगा: तूने झूठ कहा, बल्कि तूने ऐसा इसलिए किया ताकि कहा जाए कि तू दानवीर है और यह सब कहा जा चुका। फिर आदेश होगा और उसे भी चेहरे के बल घसीट कर जहन्नम में डाल दिया जाएगा।

قال تعالى: {وَمَا أُمِرُوا إِلاَّ لِيَعْبُدُوا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ}. [البينة:5]

[م1905]