المقصدُ الثّامِنُ: الرَّقَائِقُ وَالأَخْلاَقُ وَالآدَابُ

قال تعالى: {وَسَارِعُوا إِلَى مَغْفِرَةٍ مِنْ رَبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمَاوَاتُ وَالأَرْضُ أُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِينَ *}. [آل عمران:133]

3275 - (خ) عَنْ أَبِـي هُرَيْرَةَ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم: (إِنَّ اللهَ قالَ [1] : مَنْ عادَى لِي وَلِيّاً [2] فَقَدْ آذَنْتُهُ [3] بِالحَرْبِ، وَمَا تَقَرَّبَ إِلَيَّ عَبْدِي بِشَيْءٍ أَحَبَّ إِلَيَّ مِمَّا افْتَرَضْتُ عَلَيْهِ، وَمَا يَزَالُ عَبْدِي يَتَقَرَّبُ إِلَيَّ بِالنَّوَافِلِ حَتَّى أُحِبَّهُ، فَإِذَا أَحْبَبْتُهُ: كُنْتُ سَمْعَهُ الَّذِي يَسْمَعُ بِهِ، وَبَصَرَهُ الَّذِي يُبْصِرُ بِهِ، وَيَدَهُ الَّتِي يَبْطِشُ بِهَا، وَرِجْلَهُ الَّتِي يَمْشِي بِهَا، وَإِنْ سَأَلَنِي لأُعْطِيَنَّهُ، وَلَئِنِ اسْتَعَاذَنِي لأُعِيذَنَّهُ، وَمَا تَرَدَّدْتُ عَنْ شَيْءٍ أَنَا فَاعِلُهُ تَرَدُّدِي عَنْ نَفْسِ المُؤْمِنِ، يَكْرَهُ المَوْتَ وَأَنَا أَكْرَهُ مَسَاءَتَهُ) .

अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फरमाया : "अल्लाह कहता है : जो मेरे किसी वली से शत्रुता का रास्ता अपनाएगा, मैं उसके साथ जंग का एलान करता हूँ। मेरा बंदा जिन कामों के द्वारा मेरी निकटता प्राप्त करना चाहता है, उनमें मेरे निकट सबसे प्यारी चीज़ मेरे फ़र्ज़ किए हुए काम हैं। जबकि मेरा बंदा नफ़्लों के माध्यम से मुझसे निकटता प्राप्त करता जाता है, यहाँ तक कि मैं उससे मोहब्बत करने लगता हूँ और जब मैं उससे मोहब्बत करता हूँ, तो उसका कान बन जाता हूँ, जिससे वह सुनता है और उसकी आँख बन जाता हूँ, जिससे वह देखता है और उसका हाथ बन जाता हूँ, जिससे वह पकड़ता है और उसका पाँव बन जाता हूँ, जिससे वह चलता है। अब अगर वह मुझसे माँगता है, तो मैं उसे देता हूँ और अगर मुझसे पनाह माँगता है, तो मैं उसे पनाह देता हूँ। मुझे किसी काम में, जिसे मैं करना चाहता हूँ, उतना संकोच नहीं होता, जितना अपने मुसलमान बंदे की जान निकालने में होता है। क्योंकि वह मौत को नापसंद करता है और मुझे भी उसे तकलीफ देना अच्छा नहीं लगता।"

3276 - (م) وَعَنْهُ: أَنَّ رَسُولَ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم قَالَ: (بَادِرُوا بِالأَعْمَالِ فِتَناً كَقِطَعِ اللَّيْلِ الْمُظْلِمِ، يُصْبِـحُ الرَّجُلُ مُؤْمِناً وَيُمْسِي كَافِراً، أَوْ يُمْسِي مُؤْمِناً وَيُصْبِـحُ كَافِراً، يَبِيعُ دِينَهُ بِعَرَضٍ مِنَ الدُّنْيَا) .

अबू हुरैरा- रज़ियल्लाहु अन्हु- का वर्णन है कि नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमायाः "अच्छे कार्यों की ओर जल्दी करो, उन फ़ितनों से पहले, जो अंधेरी रात के विभिन्न टुकड़ों की तरह सामने आएँगे। आदमी सुबह को मोमिन होगा, तो शाम को काफ़िर तथा शाम को काफ़िर होगा, तो सुबह को काफ़िर। दुनिया की किसी वस्तु के बदले में अपने धर्म का सौदा कर लेगा।"

3278 - (م) عَنْ صُهَيْبٍ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم: (عَجَباً لأَمْرِ الْمُؤْمِنِ، إِنَّ أَمْرَهُ كُلَّهُ خَيْرٌ، وَلَيْسَ ذَاكَ لأَحَدٍ إِلاَّ لِلْمُؤْمِنِ: إِنْ أَصَابَتْهُ سَرَّاءُ [1] شَكَرَ، فَكَانَ خَيْراً لَهُ، وَإِنْ أَصَابَتْهُ ضَرَّاءُ [2] صَبَرَ، فَكَانَ خَيْراً لَهُ) .

सुहैब बिन सिनान रूमी (रज़ियल्लाहु अन्हु) का वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "मोमिन का मामला भी बड़ा अजीब है। उसके हर काम में उसके लिए भलाई है। जबकि यह बात मोमिन के सिवा किसी और के साथ नहीं है। यदि उसे ख़ुशहाली प्राप्त होती है और वह शुक्र करता है, तो यह भी उसके लिए बेहतर है और अगर उसे तकलीफ़ पहुँचती है और सब्र करता है. तो यह भी उसके लिए बेहतर है।"

3279 - (ق) عَنْ سَهْلِ بْنِ سَعْدٍ رضي الله عنه قالَ: رَأَيْتُ رَسُولَ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم قالَ بِإِصْبَعَيْهِ هكَذَا، بِالْوُسْطَى وَالَّتِي تَلِي الإِبْهَامَ: (بُعِثْتُ وَالسَّاعَةَ كَهَاتَيْنِ) .

सहल बिन साद -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फरमायाः "मुझे और क़यामत को इस तरह भेजा गया है।" यह कहते समय आपने अपनी दोनों उँगलियों को फैलाकर उनसे इशारा किया।

3280 - (م) عَنْ مُسْتَوْرِدٍ بْنِ شَدَّادٍ ـ أَخي بَنِي فِهْرٍ ـ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم: (وَاللهِ مَا الدُّنْيَا فِي الآخِرَةِ؛ إِلاَّ مِثْلُ مَا يَجْعَلُ أَحَدُكُمْ إِصْبَعَهُ هَـذِهِ ـ وَأَشَارَ يَحْيَى بِالسَّبَّابَةِ ـ فِي الْيَمِّ؛ فَلْيَنْظُرْ بِمَ تَرْجِعُ؟) .

मुसतौरिद बिन शद्दाद- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः आख़िरत की तुलना में दुनिया ऐसी है, जैसे तुममें से कोई अपनी उँगली समुद्र में डाले (और उठाए)। उसे देखना चाहिए कि उँगली के साथ कितना पानी आया।

3281 - (ق) عَنْ عُبَادَةَ بْنِ الصَّامِتِ، عَنِ النَّبِـيِّ صلّى الله عليه وسلّم قالَ: (مَنْ أَحَبَّ لِقَاءَ اللهِ أَحَبَّ اللهُ لِقَاءَهُ، وَمَنْ كَرِهَ لِقَاءَ اللهِ كَرِهَ اللهُ لِقَاءَهُ) .

आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) से रिवायत है, वह कहती हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया : “जो अल्लाह से मिलना पसंद करता है, अल्लाह भी उससे मिलना पसंद करता है और जो अल्लाह से मिलना नापसंद करता है, अल्लाह भी उससे मिलना नापसंद करता है।” मैंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या इससे अभिप्राय मौत को नापसंद करना है? वैसे तो हम सब लोग मौत को नापसंद करते हैं! आपने उत्तर दिया : “मतलब यह नहीं है, बल्कि मतलब यह है कि मोमिन को जब अल्लाह की रहमत, उसकी प्रसन्नता और उसकी जन्नत की ख़ुशख़बरी दी जाती है, तो वह अल्लाह से मिलना पसंद करता है और अल्लाह भी उससे मिलना पसंद करता है। लेकिन काफ़िर को जब अल्लाह के अज़ाब और उसके प्रकोप की सूचना दी जाती है, तो वह अल्लाह से मिलना नापसंद करता है और अल्लाह भी उससे मिलना नापसंद करता है।”

3282 - (خ) عَنْ مِرْدَاسٍ الأَسْلَمِيِّ قَالَ: قالَ النَّبِـيُّ صلّى الله عليه وسلّم: (يَذْهَبُ الصَّالِحُونَ، الأَوَّلُ فالأَوَّلُ، وَيَبْقَى حُفَالَةٌ كَحُفَالَةِ الشَّعِيرِ، أَوِ التَّمْرِ، لاَ يبَالِيهِمُ اللهُ بَالَةً) .

मिरदास असलमी- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमायाः "सदाचारी लोग, एक-एक करके गुज़र जाएँगे और जौ अथवा खजूर के भूसे की भाँति रद्दी क़िस्म के लोग शेष रह जाएँगे, जिनकी अल्लाह के यहाँ कोई हैसियत न होगी।"

3285 - (خ) عَنْ مُجَاهِدٍ، عَنْ عَبْدِ اللهِ بْنِ عُمَرَ رضي الله عنهما قَالَ: أَخَذَ رَسُولُ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم بِمَنْكِبِـي فَقَالَ: (كُنْ في الدُّنْيَا كَأَنَّكَ غَرِيبٌ، أَوْ عَابِرُ سَبِيلٍ) .
وكان ابن عمر يقول: إذا أمْسَيتَ فَلا تَنْتَظِرِ الصَّبَاحَ، وإذَا أصْبَحْتَ فَلا تَنْتَظِرِ المَساءَ، وَخُذْ مِنْ صِحَتِكَ لمَرَضِكَ، ومِنْ حَيَاتِكَ لموْتِكَ.

अब्दुल्लाह बिन उमर- रज़ियल्लाहु अन्हुमा- कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मेरे कंधे को पकड़ा और फ़रमायाः दुनिया में ऐसे रहो, जैसे एक परदेसी हो अथवा राह चलता मुसाफ़िर हो। तथा अब्दुल्लाह बिन उमर- रज़ियल्लाहु अन्हुमा- कहा करते थेः जब शाम करो, तो सुबह की प्रतीक्षा न करो और जब सुबह करो, तो शाम की प्रतीक्षा न करो तथा अपनी सेहत में लाभ उठालो रोग से पुर्व और जीवन में लोभ उठालो मौतसे पुर्व- अर्थात स्वास्थ्य को गनीमत समझ कर सूकर्म करलो )।

3287 - (خ) عَنْ عَبْدِ اللهِ بْنِ مَسْعُودٍ رضي الله عنه قـالَ: خَطَّ النَّبِـيُّ صلّى الله عليه وسلّم خَطّاً مُرَبَّعاً، وَخَـطَّ خَطّـاً فِي الْوَسَطِ خارِجـاً مِنْهُ، وَخَط خُطَطاً صِغَاراً إِلَى هَـذَا الَّذِي في الْوَسَطِ مِنْ جَانِبِهِ الَّذِي في الْوَسَطِ، وَقَـالَ: (هَـذَا الإِنْسَانُ، وَهذَا أَجَلُهُ مُحِيطٌ بِهِ ـ أَوْ: قَدْ أَحَاطَ بِهِ ـ وَهَـذَا الَّذِي هُوَ خَارِجٌ أَمَلُهُ، وَهذِهِ الخُطُطُ الصِّغَارُ: الأَعْرَاضُ، فَإِنْ أَخْطَأَهُ هَـذَا نَهَشَهُ هَـذَا، وَإِنْ أَخْطَأَهُ هَـذَا نَهَشَهُ هَـذَا) .

अनस -रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने कुछ रेखाएँ खींचीं और फ़रमाया : "यह इनसान है और यह उसकी मौत है। इनसान इसी अवस्था में रहता है कि निकटमत रेखा पहुँच जाती है।" इब्ने मसऊद -रज़ियल्लाहु अनहु- कहते हैं कि नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने एक वर्गाकार रेखा खींची और उसके बीचोबीच से बाहर निकलती हुई एक रेखा खींची। उसके बदा बीच वाली रेखा के उस भाग में, जो वर्गाकार रेखा के अंदर था, छो-छोटी बहुत-सी रेखाएँ खींचीं और फ़रमाया : "यह इनसान है, यह उसकी मौत है जो उसे चारों ओर से घेरे हुए है, यह निकली हुई रेखा उसकी आशा है और ये छोटी-छोटी रेखाएँ दुर्घटनाएँ हैं। इनसान जब एक दुर्घटना से बचकर निकलता है, तो दूसरी में फँस जाता है और जब दूसरी से बचकर निकलता है, तो तीसरी में फँस जाता है।"