882 - (ق) عن عليٍّ قال: كُنْتُ رَجُلاً مَذَّاءً [1] ، فَاسْتَحْيَيْتُ أَنْ أَسْأَلَ رَسُولَ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم، فَأَمَرْتُ الْمِقْدَادَ بْنَ الأَسْوَدِ فَسَأَلَهُ، فَقَالَ : (فِيهِ الْوُضُوءُ) .
अली बिन अबू तालिब (रज़ियल्लाहु अंहु) कहते हैं कि मैं एक ऐसा व्यक्ति था, जिसे बहुत ज़्यादा मज़ी आती थी। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के दामाद होनेे के नाते मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रही थी कि मैं आपसे इस बारे में पूछूँ। चुनांचे मैंने मिक़दाद बिन असवद को पूछने का आदेश दिया (और उन्हों ने पूछा) तो फ़रमायाः "ऐसा व्यकति अपना लिंग धोने के बाद वजू करेगा।" बुखारी में है: "अपना लिंग धोओ और वज़ू करो।" जबकि मुस्लिम में हैः "वज़ू करो और अपनी शर्मगाह पर पानी छिड़क दो।"
[خ178، (132)/ م303]