الكتاب الخامس عشر: الأَيمان والنذور

2301 - عَنْ بُرَيْدَةَ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم: (مَنْ حَلَفَ بِالْأَمَانَةِ فَلَيْسَ مِنَّا) .

बुरैदा (रज़ियल्लाहु अनहु) से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया: जिसने अमानत की क़सम खाई, वह हममें से नहीं है।

2302 - (ق) عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم: (مَنْ حَلَفَ فَقَالَ فِي حَلِفِهِ: وَاللاَّتِ وَالعُزَّى؛ فَلْيَقُلْ: لاَ إِلهَ إِلاَّ اللهُ، وَمَنْ قَالَ لِصَاحِبِهِ: تَعَالَ أُقامِرْكَ؛ فَلْيَتَصَدَّقْ) .

अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से मरफ़ूअन रिवायत है : "जिसने यह कहकर क़सम खाई कि लात तथा उज़्ज़ा की क़सम, वह 'ला इलाहा इल्लल्लाह' कहे और जिसने अपने साथी से कहा कि आओ हम जुआ खेलें, वह सद्क़ा करे।"

2304 - (ق) عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ قَالَ: قَالَ رَسولُ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم: (وَاللهِ لَأَنْ يَلِجَّ [1] أَحَدُكُمْ بِيَمِينِهِ فِي أَهْلِهِ، آثَمُ [2] لَهُ عَنْدَ اللهِ مِنْ أَنْ يُعْطِيَ كَفَّارَتَهُ الَّتِي افْتَرَضَ اللهُ عَلَيْهِ) .

अबु हुरैरा (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया: तुममें से जो अपने परिवार के प्रति क़सम खाता है और उसपर अटल रहता है, तो वह प्रायश्चित, जिसे अल्लाह ने उसपर फ़र्ज़ किया है, उसे देने और क़सम न तोड़ने के मुक़ाबले में अधिक पापी है।

2305 - (خ) عَنْ عَائِشَةَ رضي الله عنها: أُنْزِلَتْ هذِهِ الآيَةُ: {لاَ يُؤَاخِذُكُمُ اللَّهُ بِاللَّغْوِ فِي أَيْمَانِكُمْ} [البقرة:225] فِي قَوْلِ الرَّجُلِ: لاَ وَاللهِ، وَبَلَى وَاللهِ.

आइशा -रज़ियल्लाहु अन्हा- से रिवायत है, वह कहती हैं कि यह आयत {لا يؤاخذكم الله باللغو في أيمانكم} (अल्लाह तुम्हारी निरर्थक क़समों पर तुम्हारी पकड़ नहीं करेगा।) [सूरा बक़रा : 225] लोगों की इस तरह की बातों के बारे में उतरी है : नहीं अल्लाह की क़सम तथा क्यों नहीं अल्लाह की क़सम।

2306 - (م) عَنْ أَبِي أُمَامَةَ: أَنَّ رَسُولَ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم قَالَ: (مَنِ اقْتَطَعَ حَقَّ امْرِئٍ مُسْلِمٍ بِيَمِينِهِ، فَقَدْ أَوْجَبَ اللهُ لَهُ النَّارَ، وَحَرَّمَ عَلَيْهِ الْجَنَّةَ) ، فَقَالَ لَهُ رَجُلٌ: وَإِنْ كَانَ شَيْئاً يَسِيراً، يَا رَسُولَ اللهِ؟ قَالَ: (وَإِنْ قَضِيباً مِنْ أَرَاكٍ) .

अबू उमामा इयास बिन सालबा हारिसी (रज़ियल्लाहु अंहु) का वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "जिसने अपनी क़सम के ज़रिए किसी मुसलमान का हक़ छीन लिया, उसके लिए अल्लाह ने जहन्नम अनिवार्य कर दी और जन्नत हराम कर दी।" एक व्यक्ति ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल, यदि वह कोई मामूली वस्तु हो? तो फ़रमायाः "हाँ, एक मिसवाक का टुकड़ा ही क्यों न हो।"

2308 - عَنْ بُرَيْدَةَ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صلّى الله عليه وسلّم: (مَنْ حَلَفَ فَقَالَ: إِنِّي بَرِيءٌ مِنَ الْإِسْلاَمِ، فَإِنْ كَانَ كَاذِباً فَهُوَ كَمَا قَالَ، وَإِنْ كَانَ صَادِقاً فَلَنْ يَرْجِعَ إِلَى الْإِسْلاَمِ سَالِماً) .

बुरैदा (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया: जिसने क़सम खाते हुए कहा: मैं इस्लाम से बरी हूँ, और वह झूठा है, तो वह वैसा ही है, जैसा कि उसने कहा है और यदि वह सच्चा है, तो इस्लाम में सुरक्षित नहीं लौट सकेगा।

[د3258/ ن3781/ جه2100]

* صحيح.